बिस्मिल्लाहिर्र्हमानिर्रहीम
किताब ग़ैबते तूसी
क्या आप जानते हैं कि किताब ग़ैबते तूसी किन ह़ालात में लिखी गई?
इक़्तेबासः 1
📚 *किताब गैबते तूसी *
मुसन्निफ़ः शेख़ अलतूसी (अलैहिर्रह्मा)
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तआर्रुफ़ः
इमामे ज़माना (अ.) की बरकत से हम आपको अबू जाफ़र मोहम्मद बिन हनस तूसी (रह.) की किताब “किताबुल ग़ैबा” का येह नया सिलसिला पेश कर रहे हैं, जोकि शैख़ तूसी (रह.) के नाम से मशहूर है। और इसी लिए इस किताब को “ग़ैबते तूसी” के नाम से भी जाना जाता है। शैख़ तूसी (रह.) शीओं की चार मशहूर कुतुबे अर्बा में से दो के मुसन्निफ़ भी हैं। उन्होंने तहज़ीबुल अहकाम और अलइस्तिबासर तसनीफ़ की हैं। जो शैख़ कुलैनी (रह.) की “अल-काफ़ी” और शैख़ सदूक़ (रह.) की “मन ला यहज़रहुल फ़कीह” के अलावा शीआ अक़ाएद में अहादीस की चार अव्वलीन किताबों में से हैं।
जैसा कि नाम से ज़ाहिर है कि मौजूदा किताब में इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की ग़ैबत से मुताल्लिक़ उमूर पर बेहस की गई है।
शैख़ तूसी (रह.) ग़ैबते कुबरा के आग़ाज़ के बिलकुल क़रीब यानी 329 हिज्री में मशहदे मुक़द्दस के मुक़द्दस शहर तूस में 385 हिज्री में पैदा हुए।
बादअज़ां आपने बग़दाद का सफ़र किया और इन्तेहाई मुअज़्ज़िज़ उलमा जैसे शैख़ मुफ़ीद और शैख़ मुरतुज़ा (रह.) से तालीम हासिल की।
शैख़ तूसी (रह.) बनी अब्बास के दौर में रहते थे। उस वक़्त बग़दाद इस्लामी हुकूमत का मरकज़ था, जहाँ कई झूठे उलमा सरगर्म थे, क़ुरआन व सुन्नत की ग़लत तफ़सीर की जा रही थी, मुबहम अक़ाएद पर मबनी मुख़्तलिफ़ नए फ़िरक़े सर उठा रहे थे, शीअत पर बड़े पैमाने पर हमला किया जा रहा था, अहलेबैत (अ.) के पैरोकार मारे जा रहे थे और उनकी जाएदाद लूटी जा रही थी। दरहक़ीक़त इसी लूट मार की वजह से शैख़ तूसी (रह.) को भी नजफ़ की तरफ़ हिजरत करना पड़ी।
उस वक़्त सबसे ज़्यादा ज़ेरे बहस मौज़ू इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत थी।
उस नाज़ुक वक़्त में शैख़ तूसी (रह.) ने ये किताब मुख़ालेफ़ीन, दुश्मनों और शक करने वालों के तमाम सवालात के जवाब के तौर पर बेहतरीन अंदाज़ में लिखी जिसमें तमाम अहम नुक़ात शामिल हैं, मिसाल के तौर पर
– इमामे वक़्त के वजूद का सबूत
– मुख़्तलिफ़ फ़िर्क़ों के अक़ाएद की तरदीद
– ग़ैबत का सबूत और इमाम ज़माना (अ.) की तूले उम्र
– ग़ैबत का फ़लसफ़ा और हिक्मत
– उन लोगों के वाक़ेआत जिन्होंने इमाम (अ.) को देखा है।
– आदाब, अख़्लाक़ और इमाम महदी (अ.) के इल्मी फ़ज़ाएल वग़ैरा।
ये किताब बहुत अहम और काफ़ी जामेअ है। ग़ैबत (ग़ैबत के मौज़ू पर है, आम अश्ख़ास के लिए समझना भी बहुत आसान है।)
किताब 8 हिस्सों पर मुश्तमिल है, जिस पर हम आइन्दा इक़्तेबासात में बहस करेंगे।
परवरदिगारे आलम से दुआगो हैं कि हम सब इस गेराँ क़द्र किताब से मुस्तफ़ीज़ होँ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम से क़रीब से क़रीब तर हो सकें।
🤲🏻 आमीन या रब्बलुल आलमीन
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद व अज्जिल फरजहुम वल अन अअदाअहुम अज्मईन