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बिस्मिल्लाहिर्र्हमानिर्रहीम
क्या हम इमाम महदी (अज.) के ज़हूर के बाद उनके मुताल्लिक़ मज़ीद आग़ाही हासिल कर सकेंगे?
इक़्तेबासः 14
📚 किताब ग़ैबते तूसी
मुसन्निफ़ः शेख़ अलतूसी (अलैहिर्रह्मा)
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बाब 8: इमाम महदी (अज.) के कुछ औसाफ़, अफ़्आल और आदाब
इस बाब में इमाम महदी (अज.) के ज़हूर के बाद के मुताल्लिक़ चँद पहलुओं पर रौशनी डाली गई है। आइये उन्हें रवायतों की रौशनी में समझते हैः
1. इमाम महदी (अज.) की रेहाइशगाह
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम से रवायत हैः
“उस साहेबे अम्र (अज.) के लिए एक घर होगा जिसे “बैतुल हम्द” के नाम से जाना जाएगा। उसमें एक चिराग होगा जो उनकी पेदाइश के दिन से जल रहा होगा और वह उस दिन तक रौशन रहेगा जब तक वह तलवार लेकर न उठेगें।”
जहाँ तक ज़हूर के बाद उनके सद्र मकाम का ताल्लुक़ है, इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:
“मस्जिद सेहला हमारे साहेबे अम्र (अज.) की रेहाइशगाह होगी जब वह अपने अह्ल-ओ-अयाल के साथ उस जगह मुक़ीम होंगे।”
2. हम इमाम महदी (अज.) को कैसे सलाम करें
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:
“जब तुम में से कोई हमारे क़ाएम (अज.) से मिले तो इन अल्फ़ाज़ में सलाम करें:
“सलाम हो आप पर ऐ अह्ले बैते नबूवत, ख़ुज़्ज़ाने इल्म और मक़ाम रेसालत के हामिल”
3. इमाम महदी (अज.) की हुकूमत
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:
“जब क़ाएम (अज.) क़याम करेंगे तो वह एक बेमिसाल नेज़ाम के साथ आएँगे।”
मज़ीद बरआँ इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:
“क़ाएम (अज.) हज़रत सुलैमान बिन दाऊद अलैहिस्सलाम की तरह काम अंजाम देंगे। वह सूरज और चाँद को निदा देंगे तो वह उनका जवाब देंगे और ज़मीन उनके नूर से मुनव्वर हो जाएगी, वह्ये इलाही उन पर नाज़िल होगी और वह अह्क़ामे इलाही और वह्यी के मुताबिक़ अमल करेंगे।
4. असहाबे इमाम महदी (अज.)
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम रवायत करते हैः
“रुक्न व मक़ाम के दरमियान ग़ज़वए बद्र के सिपाहियों के बराबर तीन सौ तेरह अफ़राद इमाम क़ाएम (अज.) की बैअत करेंगे।”
रवायतों में बताया गया है कि इमाम महदी (अज.) के ये 313 असहाब जहाँ कहीं भी होंगे ख़ानए क़अबा पहोँचेंगे और ये दर्ज़ ज़ेल क़ुरआनी आयत की तफ़सीर हैः
“तुम जहाँ कहीं भी होगे, अल्लाह तुम सब को इकट्ठा करेगा। बेशक़ अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।” (सूरह बक़रह २:१४८)
5. रजअत (वापसी)
ये हिस्सा मुख्तसरन इशारा करता है कि इमाम महदी (अज.) की हुकूमत के बाद इमाम हुसैन और अमीरुलमोमिनीन अलैहेमस्सलाम वापस आएँगे।
इस बाब और पूरी किताब के मुतालए से हम ये नतीजा अख़्ज़ करते हैं कि पैग़म्बर अकरम (स.अ.व.अ) और आईम्मए मासूमीन (अ.स.) ने इमाम महदी (अज.) के मुतालिक़ उनकी वेलादत से लेकर उनके इलाही मिशन की तकमील तक हर तफ़सील का एहाता किया है। कोई भी इस उमूर में ला-इल्मी का दअवा नहीं कर सकता।
इमाम महदी (अज.) के मुतालिक़ मुख्तलिफ़ किताबें और लातादाद अहादीस उनकी इमामत को समझने और क़बूल करने के लिए काफ़ी हैं। लेहाज़ा, हम मज़बूती से ये साबित कर सकते हैं कि इमाम महदी (अज.) ज़िंदा हैं और अल्लाह सुब्हानहू व तआला की मरज़ी से हर एक काम को चला रहे हैं।
अलहम्दुलिल्लाह इसी के साथ हमने शैख़ तूसी (रह.) की बेहद मुफ़ीद किताब अल-ग़ैबा का ख़ुलासा मुकम्मल किया।
परवरदिगारे आलम की बारगाह में दुआगो हैं कि वह हम सब की ज़िन्दगी को इमाम महदी (अज.) की ख़िदमत में सर्फ़ करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
🤲🏻 आमीन या रब्बलुल आलमीन
“अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद व अज्जिल फरजहुम वल अन अअदाअहुम अज्मईन”