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बिस्मिल्लाहिर्र्हमानिर्रहीम
इमाम महदी (अज.) कब और कैसे ज़ाहिर होंगे?
इक़्तेबासः 13
📚 किताब ग़ैबते तूसी
मुसन्निफ़ः शेख़ अलतूसी (अलैहिर्रह्मा)
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बाब 7: इमाम ज़माना (अज.) की तूले उम्र
इस बाब में मुख़्तलिफ़ मौज़ूआत हैं, ग़ैबत और इमाम महदी (अज.) के ज़हूर से मुताल्लिक़ बहुत से सवालात के जवाबात दिए गए है।
1۔ ज़हूर के वक़्त आप (अज.) की उम्र
इमाम महदी (अज.) की उम्र ज़हूर के वक़्त के मुताल्लिक़ हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि आप (अज.) की वेलादत 255 या 256 हिज्री में हुई और जब ज़हूर फरमाएंगे तो उम्र मुबारक उसी सन् वेलादत के हिसाब से होगी।
रवायात के मुताबिक़ अस्ल उम्र से क़तए नज़र, जब आप (अज.) ग़ैबत से ज़ाहिर होंगे तो तक़रीबन चालीस साल के नौजवान की तरह नज़र आएँगे।
2۔ कुछ का दअवा है कि इमाम महदी (अज.) मर जाऐंगे या शहीद हो जाऐंगे और फिर ज़हूर से पहले दुबारा ज़िंदा होंगे।
कुछ अश्ख़ास ऐसे भी हैं जो झूठे दअवे करते हैं कि इमाम महदी (अज.) फ़ौत हो चुके हैं या शहीद हो गए हैं। ये उनके अल्लाह पर शक और आले मोहम्मद (अ.स.) से दुश्मनी की वजह से है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः
’’अगर कोई तुम्हारे पास आए और कहे कि उसने उनकी (इमाम महदी (अ.)) क़ब्र को छुवा है तो उस से क़बूल ना करना।”
रवायात से साबित है कि इमाम महदी (अज.) अल्लाह की मर्ज़ी से ज़िंदा हैं और उस वक़्त तक ज़िंदा रहेंगे यहाँ तक कि अद्ल-ओ-इन्साफ़ के क़याम के लिए ज़हूर करें।
3۔ ज़हूर का वक़्त
इमाम महदी (अज.) के ज़हूर का वक़्त अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल के पोशीदा उलूम में से है। आईम्मए मासूमीन अलैहेमुस्सलाम ने हमें इस मुआमले में बहुत मोहतात रहने की ताकीद की है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः
“जिसने ज़हूर का वक़्त मुऐयन किया उसने झूठ कहा, ना हमने माज़ी में उसके लिए कोई वक़्त मुक़र्रर किया है और ना ही आइन्दा ऐसा करेंगे।“
4۔ ज़हूर से पहले की निशानियाँ
इस हिस्से में पेशनगोई वाले वाक़ेआत पर बहेस की गई है जो इमाम महदी (अज.) के ज़हूर से पहले रूनुमा होंगे। इन अलामात का ज़ाहिर होना इस बात की तरफ़ इशारा है कि ज़हूर का वक़्त क़रीब आ रहा है। ये जानना ज़रूरी है कि कुछ निशानियाँ ऐसी हैं जो हतमन होंगी और कुछ और भी हैं जो हो भी सकती हैं या नहीं। ये वाक़ेआत कब और कैसे वक़ूअ पज़ीर होंगे उस का इल्म फ़क़त अल्लाह सुब्हानहू व तआला के पास है।
मज़ीद बरआँ, हमारे पास ऐसी रवायात मौजूद हैं जिनमें अइम्मा अलैहेमुस्सलाम ने हमें नसीहत की है कि ग़ैबत के इस मुश्किल वक़्त में अपनी ज़िंदगी कैसे गुज़ारें। मिसाल के तौर परः
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः
“हर शख़्स का फ़र्ज़ है कि वो अल्लाह से डरे और दीन से वाबस्ता रहे।“
मज़ीद बरआँ उन लोगों के बारे में भी रवायात मौजूद हैं जो ख़ुलूसे नीयत से इमाम महदी (अज.) का इन्तेज़ार करते हैः
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः
“अल्लाह अज़्ज़ व जल के सबसे मुक़र्रब बंदे जिन से वो राज़ी है वो हैं जो इस बात पर यक़ीन रखते हैं कि अल्लाह की हुज्जत कभी बातिल नहीं हो सकती और दिन रात उस का इन्तेज़ार करते हैं, उन की ग़ैबत के दौरान उनके मक़ाम के मुताल्लिक़ नहीं जानते और अल्लाह सुब्हानहू व तआला का ग़ज़ब उनके दुश्मनों पर है जो शुकूक-ओ-शुबहात में पड़ जाएँगे जबकि उसकी हुज्जत ग़ैबत में होगी।
परवरदिगारे आलम की बारगाह में दुआगो हैं कि इमाम ज़माना (अज.) की ग़ैबत को जल्द अज़ जल्द ख़त्म फ़रमाए और हमें ईमान पर साबित क़दम रखे।
🤲🏻 आमीन या रब्बलुल आलमीन
“अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद व अज्जिल फरजहुम वल अन अअदाअहुम अज्मईन”