ख़ुलासा 13
किताब का नाम: अल-ग़ैबह
मुसन्निफ़: मोहम्मद इब्ने इब्राहिम इब्ने जाफ़र (अल-नोमानी)
बाब: 20
यह बाब असहाब ए इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) की क़ीयाफह शिनासी कराता है
असहाब ए इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) वो अफ़राद होंगे जो तमाम आमाल ए सालेह अंजाम देने में आगे आगे रहने वाले हैं
इमाम अली (अ.स.) ने इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) की फ़ौज के मुताल्लिक़ फ़रमाया है कि असहाब की अक्सरियत नौजवान और ताज़ा-दम होगी, सिर्फ़ कुछ ही असहाब ज़ईफ़ होंगे, जैसे खाने में नमक, या आंखों में सुरमा।
इस गिरोह की बहुत सी सिफ़ात में से एक सिफ़त यह होगी कि जवान जो अपने बिस्तरों पर सो रहे होंगे, उन्हें उसी शब में बग़ैर साबिक़ तक़ररूर के अल-क़ाएम (अ.त.फ़.श.) की ख़िदमत में ले जाया जायेगा और सुबह में वह अपने आप को मक्के में पायेंगे।
मोजम अल-अहादीस अल-इमाम महदी: जिल्द 5, सफ़हा 18
बाब: 21
यह बाब इमाम (अ.त.फ़.श.) के ज़ुहूर से पहले और ज़ुहूर के बाद शियों के हालात की वज़ाहत करता है-
इमाम सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं: जब हमारा क़ाएम (अ.त.फ़.श.) ज़ुहूर करेगा, वो अफ़राद जो अपने आप को ज़ुहूर से फ़ाएदा उठाने वाला समझते होंगे (यानी जो लोग अपने आप को शिया कहते होंगे), उसके ख़िलाफ़ एहतेजाज करेंगे। और दूसरी तरफ़ वो अफ़राद जो सूरज और चाँद की परस्तिश करते होंगे इमाम (अ.त.फ़.श.) की फ़ौज में शामिल हो जाएंगे और उनके ज़ुहूर से मुस्तफ़ीद होंगे।
यह हदीस साफ़ तौर पर वाज़ेह करती है कि हमें सिर्फ़ शिया घराने में पैदा होने और मोहिब ए इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) होने के दावे पर तकिया नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें इस नेमत की पूरी ताक़त से हिफाज़त करना चाहिए और अक्सर उन दुआओं की तिलावत करना चाहिए, ताकि जद्दोजहद के वक़्त हम इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) की मोहब्बत और विलायत को तर्क ना कर दें
तारीख़ गवाह है कि लोगों ने गिरोह तब्दील किये हैं और आख़िरी लम्हें में भी अंधेरे (गुमराही) से निकल कर नूर (नूर ए हक़) की तरफ़ आ गए। इनमें सबसे मशहूर और बेहतरीन मिसाल जनाबे हुर अलैहिस्सलाम की है