*इक़्तिबास 26*
*किताब : नज्म उस साक़िब*
*मुसन्निफ : मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.)*
*बाब: 7 (पहला हिस्सा)*
*उन लोगों के वाक़ेआत जिन की इमाम से मुलाक़ात हुयी*
सातवें बाब के साथ हम इस किताब की दूसरी जिल्द की शुरुआत कर रहे हैं, इब्तिदा में मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.) 250 से ज़्यादा लोगों का तज़किरा करते हैं जिन की मुलाक़ात इमाम (अ.त.फ़.श.) से हुयी, जैसा शेख़ सदूक़ (र.अ.) ने नक़्ल किया है। फिर आप ग़ैबत ए कुबरा में इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से मुलाक़ात के मज़ीद तक़रीबन 100 वाक़ेआत का तफ़सीली ज़िक्र करते हैं, इख़्तेसार की ग़रज़ से हम सिर्फ़ पांच वाक़ेआत का तज़किरा यहाँ करेंगे।
*1- इस्माईल बिन हसन हरक़ली को इमाम (अ.त.फ़.श.) ने शिफ़ा अता फ़रमाई* सातवें बाब का पाँचवाँ वाक़ेआ
इस्माईल की बायीं रान पर एक बहुत बड़ा फोड़ा हो गया, उस से बहुत ज़्यादा खून निकलने लगा और उनकी नमाज़ की अदाएगी पर असर होने लगा। वह सय्यद रज़ीउद्दीन इब्ने तूसी से मिले जो उस वक़्त शियों के सबसे बड़े आलिम थे
सय्यद रज़ीउद्दीन ने हिल्ला के तमाम तबीबों को बुलाया और उनसे मशविरा लिया। उन्होंने मशविरा दिया कि वाहिद मुमकिन इलाज उस फोड़े वाले आज़ा को काट देना है लेकिन उस में भी कुछ इन्तेहाई एहम रगों के कट जाने का बहुत ज़्यादा ख़तरा है।
फिर वह बग़दाद गए और वहां शाही तबीबों से तिबई मशविरा लेने में अपनी सारी दौलत ख़र्च दी।
बिलआख़िर वह इन्तेहाई मोहताजी और मुफ़लिसी की हालत में इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) से मदद मांगने सामर्रह गये, जब वह सामर्रह से वापस आने वाले थे, उन्होंने आइम्मह (अ.स.) की अलविदाई ज़ियारत के लिए ग़ुस्ल किया और हरम की तरफ़ चले, तो उनकी मुलाक़ात हज़रत ए महदी (अ.त.फ़.श.) से हुई, जिन्होंने उनके फोड़े को दबाया और उनको फ़ौरन ही मुकम्मल शिफ़ा मिल गई
इस मोजिज़ाती इलाज की ख़बर दूर दूर तक फैल गई, यहाँ तक कि वह शाही तबीब भी आये जिन्होंने इस से क़ब्ल उनका मुआएना किया था और उस फोड़े की किसी भी तरह की निशानी ना देख कर हैरत-ज़दा हो गए
उनके फ़रज़न्द शम्सुद्दीन बयान करते हैं:
*उस वाक़ेअ के बाद, मेरे वालिद फ़िराक़ की वजह से बहुत ग़मगीन रहने लगे, वह सर्दियों के पूरे मौसम के लिए बग़दाद चले जाते थे, और वहां से सामर्रह जा कर ज़ियारत अंजाम देते थे*
इस तरह उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में हज़रत ए महदी (अ.त.फ़.श.) से दोबारा मुलाक़ात की उम्मीद में 40 मरतबा सामर्रह की ज़ियारत अंजाम दी
*यहाँ तक कि हम भी अपने आक़ा से बा-बरकत मुलाक़ात का शरफ़ हासिल करने की मुसलसल उम्मीद में हैं। शायद कभी उनकी मेहरबान नज़र ए करम हम पर भी पड़ जाए और हम को भी यह ऐज़ाज़ हासिल हो जाये*