इक़्तिबास 27
किताब : नज्म उस साक़िब
मुसन्निफ : मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.)
बाब: 7 (दूसरा हिस्सा)
उन लोगों के वाक़ेआत जिन की इमाम से मुलाक़ात हुयी
सातवें बाब के साथ हम इस किताब की दूसरी जिल्द की शुरुआत कर रहे हैं, इब्तिदा में मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.) 250 से ज़्यादा लोगों का तज़किरा करते हैं जिन की मुलाक़ात इमाम (अ.त.फ़.श.) से हुयी, जैसा शेख़ सदूक़ (र.अ.) ने नक़्ल किया है। फिर आप ग़ैबत ए कुबरा में इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से मुलाक़ात के मज़ीद तक़रीबन 100 वाक़ेआत का तफ़सीली ज़िक्र करते हैं, इख़्तेसार की ग़रज़ से हम सिर्फ़ पांच वाक़ेआत का तज़किरा यहाँ करेंगे।
2- जंग ए सिफ़्फ़ीन में लगा हुआ ज़ख़्म सातवें बाब का 46वाँ वाक़ेआ
हमारे इलाक़े के लोगों ने मोह्यूद्दीन अरबेली से नक़्ल किया है – वह बयान करते हैं कि वह एक रोज़ किसी शख़्स के साथ अपने वालिद के पास आये और जब वह वहां बैठे थे, उस शख़्स को नींद आ गयी आ गई और उस का अमामा उस के सर से गिर गया और उस के सर पर एक गहरा ज़ख़्म दिखाई दिया
मेरे वालिद ने दरयाफ़्त किया “तुम को ये ज़ख़्म कैसे और किस वक़्त लगा ?”
उस ने जवाब दिया “यह सिफ़्फ़ीन में लगा है”
फिर उस से पूछा: “वह कैसे मुमकिन है ? जंग ए सिफ़्फ़ीन को हुए एक ज़माना गुज़र गया”
उस ने कहा: “मैं एक बार मिस्र के सफ़र पर था, और ग़ाज़ा का रहने वाला एक शख़्स भी मेरे साथ जा रहा था, रास्ते में जंग ए सिफ़्फ़ीन का ज़िक्र आया, तो उसने कहा :अगर मैं जंग ए सिफ़्फ़ीन में मौजूद होता तो मैं अपनी इस तलवार की प्यास को अली और उनके शियों के ख़ून से बुझाता”
तो मैंने कहा : “अगर मैं जंग ए सिफ़्फ़ीन में मौजूद होता तो मैं अपनी इस तलवार की प्यास को मोआवियाह और उसके आदमियों के ख़ून से बुझाता, चूँकि अब वह यहाँ मौजूद नहीं हैं, लेहाज़ा हम और तुम उन दोनों गिरोहों की नुमाइन्दगी करते हैं और हम ही आपस में लड़ लें, और देखें कि कौन जीतता है”
हम दोनों ने मुबारेज़ा शुरू किया और मुझे उसकी तलवार से ज़ख़्म लग गया और मैं बेहोश हो कर गिर गया
मैं उसी हालत में पड़ा हुआ था, कि एक शख़्स आया और मुझे अपने नैज़े की नोक से बेदार किया, जब मैंने अपनी आँखें खोली, वह अपनी सवारी से उतरा और उसने अपना हाथ मेरे ज़ख़्म पर फेरा और वह फ़ौरन ही ठीक हो गया, और फिर उसने मुझसे वहां रुकने के लिए कहा
वह कुछ देर बाद मेरे हरीफ़ के कटे हुए सर और उसके घोड़े के साथ वापस आया
उस ने कहा: अपने दुश्मन का कटा हुआ सर लो, क्योंकि तुमने हमारी मदद की, हमने भी तुम्हारी मदद की और अल्लाह (सु.व.त.) भी उन की मदद करता है जो उसकी मदद करते हैं
मैंने दरयाफ़्त किया: आप कौन हैं ?
उन्होंने जवाब दिया: मैं फलां फलां हूँ जो साहेब ए अम्र है
फिर उन्होंने फ़रमाया: अगर कोई शख़्स तुमसे पूछे कि तुम्हें यह ज़ख़्म कैसे लगा, तो तुम यही कहना कि मैं जंग ए सिफ़्फ़ीन में ज़ख़्मी हुआ हूँ
अल्लाह (अज़्ज़ व जल्ल) से दुआ है कि वह हमको भी अपनी ज़िन्दगी भर हज़रत ए साहेब ए अम्र की ख़िदमत में मसरूफ़ रखे