*इक़्तिबास 28*
*किताब : नज्म उस साक़िब*
*मुसन्निफ : मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.)*
*बाब: 7 (तीसरा हिस्सा)*
*उन लोगों के वाक़ेआत जिन की इमाम से मुलाक़ात हुयी*
इस बाब में मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.) ग़ैबत ए कुबरा में इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से मुलाक़ात के तक़रीबन 100 वाक़ेआत का तफ़सीली ज़िक्र करते हैं, इख़्तेसार की ग़रज़ से हम यहाँ सिर्फ़ पांच वाक़ेआत का तज़किरा करेंगे। आज हम उन पांच में से तीसरे का ज़िक्र कर रहे हैं।
50वां और 51वां वाक़ेआ इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) की शेख़ मुफ़ीद (र.अ.) के लिए तौक़ीआत (ख़ुतूत) पर मुश्तमिल है, हम 51वें वाक़ेअ में दर्ज तौक़ी के हिस्सों को बयान कर रहे हैं।
*3- शेख़ मुफ़ीद (र.अ.) के लिए इमाम की दूसरी तौक़ी* (सातवें बाब का 51वां वाक़ेआ)
शेख़ तबरसी (र.अ.) ने भी अल-एहतेजाज में नक़्ल किया है कि :
इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) की दूसरी तौक़ी बरोज़ ए पंच-शम्बा 23 ज़िल्हज्ज 412 हिजरी में शेख़ मुफ़ीद (र.अ.) के नाम आयी, जिस में लिखा था
*बिस्मिल्लाह अर-रहमान अर-रहीम*
*अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह, ऐ नासिर ए दीन, ऐ कलमा ए हक़ के साथ अल्लाह की तरफ़ दावत देने वाले, हम तुम्हारे वजूद के लिए अल्लाह सुब्हानहु व तआला का शुक्र अदा करते हैं, जिस के सिवा कोई माबूद नहीं है, और अपने आक़ा ओ सरदार मोहम्मद ख़ातम उल-अम्बिया और उनके अहलेबैत की बारगाह में दुरूद ओ सलवात भेजते हैं।*
*अल्लाह सुब्हानहु व तआला तुमको हर बला और मुसीबत से और दुश्मन के हरबों से महफूज़ रखे, तुम्हारी ज़ाती दुआएं हमारी नज़र में थीं, हम ने भी तुम्हारी दुआओं की क़ुबूलियत के लिए शफ़ाअत की है, मैं यह अपने ख़ैमे से लिख रहा हूँ, जो एक ना-मालूम पहाड़ी पर नस्ब किया हुआ है, और मैं यहाँ एक वादी से चल कर आया हूँ, और यह मुम्किन है कि एक दिन मैं इस पहाड़ी से नीचे उतर कर बस्ती में आ जाऊँगा, शायद मेरे हालात तब्दील हों और हमारी ख़बर तुम तक पहुँच जाए, और वह क़ुरबत जो तुम नेक आमाल के ज़रिये तलब करते हो, अल्लाह तुमको अता कर दे*
*अल्लाह अपनी निगाहों से तुम्हारी हिफ़ाज़त करे जो कभी सोती नहीं हैं, तुम को इन हालात का सामना करना चाहिए, इस दरमियान अहले बातिल तबाह हो जायेंगे, जिसके नतीजे में मोमेमीन राज़ी और ख़ुशनूद होंगे और गुनहगारों को रंज ओ सदमा होगा*
आगे इमाम (अ.त.फ़.श.) शेख़ मुफ़ीद (र.अ.) को तरह ख़िताब करते हैं:
*ऐ मुख़लिस दोस्त और मर्द ए मुजाहिद, अल्लाह तुम्हारी मदद करे जैसे उस ने माज़ी में उसने अपने मुन्तख़ब बन्दों की मदद की। मैं वादा करता हूँ कि अगर तुम्हारे बिरादारान ए ईमान में से कोई ख़ौफ़ ए ख़ुदा अख़्तियार करे, और उस रक़म को अदा करे जो उस पर मुस्तहक़ को देना वाजिब है तो वह ग़म और आफतों से महफूज़ रहेगा, लेकिन अगर कोई शख़्स माल के इन्फ़ाक़ में बुख़्ल करे जो उसको अल्लाह ने आरज़ी तौर पर अता किया है, तो उसने अपने बच्चों और आख़ेरत के लिए नुक़सान का सौदा किया है, अगर हमारे शिया (अल्लाह अपनी इताअत ,में उनकी मदद करे, उनसे लिए गए अहद ओ मीसाक़ को पूरा करने में मुख़लिश होते, तो उनको हमारी मुलाक़ात की बरकत हासिल करने में ताख़ीर नहीं होती, और हमारी मुलाक़ात के शरफ़ और ऐज़ाज़ ने पहले ही उनकी मारेफ़त को पहले ही कामिल कर दिया होता। लेहाज़ा सिर्फ़ वह चीज़ें जो हमको उनसे पोशीदा रखती हैं उनके मुताल्लिक़ वह उमूर हैं जो हम तक पहुँचते हैं और वह हमको ख़ुश नहीं करते और हम उनसे वह तवक़्क़ो भी नहीं करते। और अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) मददगार है और वह ही सबसे बेहतर निगरान है और मुहाफ़िज़ है। और उसकी सलवात ओ बराकात हो मुबश्शिर ओ नज़ीर मोहम्मद और उनकी पाकीज़ा आल पर*
*हम ख़ुदा वन्द ए मुतआल से तहफ़्फ़ुज़ के तलबगार हैं उन आमाल से बचने में जो हज़रत ए महदी (अ.त.फ़.श.) की नाराज़गी का सबब हो सकते हैं*