किताब नज्म उस साक़िब से इक़तेबासात (3)
आइये ज़माने के इमाम के मुताल्लिक़ जानें
बाब-1 (हिस्सा अव्वल)
इमाम (अ.त.फ़.श.) की विलादत और उनके वालिद ए माजिद (अ.स.) की ज़िन्दगी के दौरान कुछ हालात का मुख़्तसर तज़किरा
हज़रत महदी (अ.त.फ़.श.) की विलादत सन 255 हिजरी में 15 शाबान को जुमे के रोज़ हुई, आपकी वालिदा जनाबे नरजिस ख़ातून (सलामुल्लाहे अलैहा) रोम की शहज़ादी थीं, और हज़रत इसा (अ.स.) के वसी हज़रत शमून (अ.स.) की नस्ल से थीं
अहले रोम से जंग के दौरान मुसलमान फ़ौज ने उनको क़ैदी बना लिया था, इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने बुश्र इब्ने सुलैमान (अ.र.) नाम के एक मोतबर शिया को भेजा कि उन्हें आज़ाद करा के इस पाक और मुक़द्दस घराने में ले आयें
इमाम अली नक़ी (अ.स.) के घर पहुंचने पर इमाम ने उनको अपनी बहन जनाबे हकीमा ख़ातून (स.अ.) की निगहदाश्त में रखने का इन्तेज़ाम किया , इस मौक़े पर आपने अपनी बहन से फ़रमाया
“ऐ दुख़तर ए रसूल ए ख़ुदा, आप इनको अपने घर ले जायें, और अहकाम और रिवायात की तालीम दीजिये, क्योंकि यह मेरे बेटे (इमाम हसन असकरी अ.स.) की ज़ौजा और अल-क़ाएम (अ.त.फ़.श.) की वालिदा हैं”
यह भी बयान किया जाता है कि इमाम ए ज़माना (अ.स.) की वालिदा को और भी मुख़्तलिफ़ नामों से जाना जाता था, जैसे मलीका, सूसन, रैहाना और साक़िल