बाब: 7 (पाँचवाँ हिस्सा)
उन लोगों के वाक़ेआत जिन की इमाम से मुलाक़ात हुयी
इस बाब में मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.) ग़ैबत ए कुबरा में इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से मुलाक़ात के तक़रीबन 100 वाक़ेआत का तफ़सीली ज़िक्र करते हैं, इख़्तेसार की ग़रज़ से हम यहाँ सिर्फ़ पांच वाक़ेआत का तज़किरा करेंगे। आज हम उन में से पाँचवाँ और आख़िरी वाक़ेआ पेश कर रहे हैं।
5- इमाम ए ज़माना (अ.त.फ़.श.) की सिन-रसीदा वालिद की ख़िदमत की ताकीद (सातवें बाब का 86वां वाक़ेआ)
शेख़ बाक़र से नक़्ल किया हुआ एक मुत्तक़ी शख़्स के बारे में एक वाक़ेआ मिलता है, जो अपने वालिद ए बुज़ुर्गवार का एक बहुत ही फ़रमा-बरदार बेटा था, वह उनका इतना ज़्यादा ख़्याल रखता था कि उनके लिए बैतुल ख़ला में पानी भी रखता था और जब तक वालिद अपने वुज़ू से फ़ारिग़ होते थे, वह बाहर इन्तेज़ार करता था, वह हमेशा अपने वालिद की ख़िदमत में लगा रहता था, अलबत्ता हर शबे बुध वह मस्जिद-ए सहला चला जाता था, लेकिन एक मर्तबा उस ने वहां जाना भी तर्क कर दिया। जब उस से उसके मुताल्लिक़ पूछा गया, उस ने जवाब दिया:
एक मर्तबा जब मैं वहां चालीस बुध के लिए मुसलसल जा रहा था, आख़िरी बुध को कुछ ऐसा हुआ कि मैं दिन के वक़्त नहीं निकल सका, रात आ गई, हालाँकि वह एक चाँदनी रात थी, फिर भी मैं अकेला था। कुछ देर चलने के बाद जब सिर्फ़ एक तिहाई फ़ासला बाक़ी रह गया था, मैंने एक अरब को अपनी तरफ़ आते देखा, मुझे लगा कि अब मेरा सामान लूटने वाला है। वह शख़्स मेरे नज़दीक आया और मुझसे मेरे क़रिये की ज़बान और लहजे में बात की और सबसे पहले पूछा कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। मैंने कहा कि मैं मस्जिद ए सहला जा रहा हूँ, फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास कुछ खाने के लिए है। मैंने जवाब दिया कि मेरे पास कुछ नहीं है। उन्होंने कहा: अपनी जेब में देखो, फिर मैंने मना कर दिया कि मेरे पास कुछ नहीं है। इस बात पर उन्होंने मुझे डांटा और फिर मैंने देखा की मेरी जेब में कुछ किशमिश हैं जो मैंने अपने बच्चे के लिए ली थी, और उसको देना भूल गया था। फिर उन्होंने मुझसे तीन मर्तबा कहा: मैं तुमको तुम्हारे सिन-रसीदा वालिद के मुताल्लिक़ मशविरा देता हूँ, मैं तुम्हें उनके बारे में ताकीद करता हूँ, और मैं तुम्हें उनके मुताल्लिक़ हुक्म देता हूँ। उन्होंने यह कहा और मेरी नज़रों से ओझल हो गए। फिर मुझे फ़ौरन एहसास हुआ कि वह हज़रत ए हुज्जत (अ.त.फ़.श.) ही थे, जिनको यह गवारा नहीं हुआ कि मैं अपने वालिद की ख़िदमत से एक रात के लिए भी दूर रहूँ, यही वजह थी कि मैंने शबे बुध को भी मस्जिद-ए सहला जाना तर्क कर दिया
हज़रत (अ.त.फ़.श.) हमको हमारे वालिदैन की ख़ुशनूदी अता फरमायें, और हमारे वालिदैन की ख़िदमत हमको अपने आक़ा हज़रत ए महदी (अ.त.फ़.श.) के नज़दीक रखे