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बिस्मिल्लाहिर्र्हमानिर्रहीम
क्या ग़ैबत और तूले उम्र सिर्फ इमाम महदी अलैहिस्सलाम के लिए मख़सूस है?
इक़्तेबासः 5
📚 किताब गैबते तूसी
मुसन्निफ़ः शेख़ अलतूसी (अलैहिर्रह्मा)
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बाब1: इमाम महदी (अज.) की ग़ैबत पर बेहस (हिस्सा-4)
इस बाब में क़ुरआन मजीद से अंबिया अलैहिमुस्सलाम की ग़ैबत और उनकी तवील उम्र की चँद मिसालें बयान की गई हैः
1. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से मुताल्लिक़ क़ुरआन मजीद में एक सूरा है जो उनसे मख़सूस है। उस में बताया गया है कि वो किस तरह अपने वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम से पोशीदा हुए। हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम जबकि रसूल थे, उन पर दिन रात वह्यी आती थी, फिर भी उनके फ़र्ज़ंद की ख़बर उनसे पोशीदा थी।
हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम के दूसरे फ़र्ज़ंद हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से मिले भी और उनसे मुआमलात भी किए लेकिन उन्हें ये मालूम नहीं था कि वो उनके भाई हैं।
यहाँ तक कि साल बीत गए और अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने उनके क़िस्से को नाज़िल किया और उनको उनके वालिद से मिला दिया।
2. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़िरऔन और उस की क़ौम से छिपने के लिए अपना वतन छोड़ा।
किसी शख़्स ने भी उन्हें तवील अरसे तक ना पाया, यहाँ तक कि अल्लाह ताला ने उन्हें रसूल बना कर भेजा।
जब आप (अ.) ने अपनी नबूवत का ऐलान किया तो सबने उन्हें पहचान लिया।
3. हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने से ज़िंदा हैं। उनके पूरे सफ़र का क़िस्सा मशहूर है। और क़ुरआन मजीद में मज़कूर है। जबकि
हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम की रेहाइशगाह किसी को मालूम नहीं है,
लेकिन मुतअद्दिद रेवायात हैं कि लोगों ने आपको एक मुत्तक़ी आदमी के तौर पर देखा और उनसे जुदा होने के बाद ही उन्हें मालूम हुआ कि वो हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम हैं।
4. जब हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की क़ौम ने उन्हें झुठलाया तो आप (अ.) ने ख़ुद को उनसे छिपा लिया।
चुनाँचे वो ग़ैबत में इस हद तक चले गए कि कोई नहीं जानता था कि वो कहाँ हैं।
अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने उन्हें मछली के पेट में छिपा दिया और उनकी जान बचाई यहाँ तक कि एक मुनासिब मुद्दत गुज़र गई और उन्हें उनकी क़ौम में फिर से भेजा।
5. अस्हाबे कह्फ़ (अह्ले ग़ार) का क़िस्सा क़ुरआन मजीद में बयान किया गया है कि किस तरह ये लोग अपनी क़ौम से बच कर और अपने दीन को बचाने के लिए भागे थे। वो तीन सौ साल तक एक ग़ार में पोशीदा सोते रहे। उस के बाद अल्लाह तआला ने उन्हें दोबारा ज़िंदा किया और वो अपनी क़ौम में वापस आए। बादअज़ाँ अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने अपनी मर्ज़ी से उन्हें दोबारा उसी ग़ार में सुला दिया।
ये बात मशहूर है कि अल्लाह ने उन्हें पोशीदा और महफ़ूज़ रखा है और ये कि ये लोग इमाम महदी (अज.) के साथ उठेंगे।
अह्ले ग़ार के क़िस्से से हमें अच्छी तरह अंदाज़ा होजाता है कि किस तरह *अल्लाह तआला ने उनके लिए ग़ैबत के दो दौर मुऐयन किए, एक मुख़्तसर और दूसरा तवील जो आज तक जारी है। गरचे ये हज़रात अंबिया या इमाम नहीं थे लेकिन अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने उनके ज़रीए एक मिसाल क़ाएम की है।*
अगर क़ुरआन करीम में ये क़िस्से ना होते तो शक करने वाले इन वाक़ेआत को रद्द कर देते ताकि इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के इनकार में आसानी हो। ताहम अब किसी के पास उनकी तूले उम्र और ग़ैबत की हक़ीक़त को रद्द करने का कोई उज़्र या दलील नहीं है।
परवरदिगारे आलम की बारगाह में दुआगो हैं कि हमें क़ुरआन की मिसालों को समझने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। हमें इमाम महदी (अज.) के अक़ीदे पर साबित क़दम रखे और दौरे ग़ैबत में हमें सब्र की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
🤲🏻 आमीन या रब्बलुल आलमीन*
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद व अज्जिल फरजहुम वल अन अअदाअहुम अज्मईन