बाब: 7 (चौथा हिस्सा)*
उन लोगों के वाक़ेआत जिन की इमाम से मुलाक़ात हुयी
इस बाब में मोहद्दिस ए नूरी (र.अ.) ग़ैबत ए कुबरा में इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से मुलाक़ात के तक़रीबन 100 वाक़ेआत का तफ़सीली ज़िक्र करते हैं, इख़्तेसार की ग़रज़ से हम यहाँ सिर्फ़ पांच वाक़ेआत का तज़किरा करेंगे। आज हम उन पांच में से चौथे वाक़ेअ का ज़िक्र कर रहे हैं।
4- भटके हुये हाजी की मदद (सातवें बाब का 69वां वाक़ेआ)
किताब *”खैरुल मक़ाल”* में भी यह दर्ज हुआ है कि: हमारे आबाई वतन का एक मोमिन जिसका नाम शेख़ मोहम्मद क़ासिम था, और उसने कई हज किये थे, बयान करता है कि: एक मरतबा दौरान ए सफ़र ए हज मैं शदीद थकान की वजह से एक दरख़्त के साये में सो गया। और इतनी देर तक सोता रहा कि मेरे क़ाफ़िले वाले मुझे तन्हा छोड़ कर आगे बढ़ गए। फिर वह कहता है:
“बेदार होने के बाद जब मैंने पाया कि वह लोग बहुत दूर निकल चुके हैं, और मैं रास्तों से भी ना-वाक़िफ़ था। आख़िरकार मैं साहेब उल-अम्र से इस्तग़ासे के लिए इन अल्फ़ाज़ में एक जानिब मुतवज्जेह हुआ: या अबा सालेह, या अबा सालेह, उसी तरह जैसे इब्ने ताऊस ने अपनी किताब “अमान” में रास्ता भटके हुए लोगों के लिए इमाम महदी (अ.त.फ़.श.) से इस्तग़ासे का तज़किरा किया है, मैं इस्तग़ासा कर ही रहा था कि मैंने एक नाक़ा-सवार ख़ूबसूरत जवान को अपने नज़दीक देखा जो अरबी लिबास में था, उसने कहा “तुम हाजियों से बिछड़ गए हो?” आओ मेरे साथ सवार हो जाओ ताकि मैं तुम्हें उनसे मिला दूँ, मैं सवार हो गया, थोड़ी ही देर में मैं अपने क़ाफ़िले के क़रीब पहुँच गया, उन्होंने मुझे वहाँ उतारा और कहा: जाओ, मैंने कहा “मुझे प्यास लागी है, उन्होंने अपनी मश्क मुझे दी और मैंने उस से पानी पिया, बाख़ुदा वह पानी अजब ठंडा और मीठा था। जब मैं क़ाफ़िले से मिल गया और उसके बाद मैंने हर तरफ़ देखा लेकिन मैंने उनको कहीं ना पाया
ख़ुदाया हमें भी वली ए अस्र हज़रत ए महदी (अ.त.फ़.श.) के हाथों के जाम से सेराब फ़रमा